सोमवार, 3 जनवरी 2022

शीत-कुंडली पूस की! ❄️ [ कुंडलिया ]


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✍️ शब्दकार ©

❄️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                        - 1-

कंबल में रुकता नहीं, पूस माघ  का  शीत।

दादी पोते  से कहे,कब हो  ठंड   व्यतीत।।

कब हो ठंड व्यतीत,शीत अब सहा न जाता

काँपे थर - थर  देह, हृदय  मेरा   घबराता।।

'शुभं'ताप कर आग,मिले तन मन को संबल।

बरसे तुहिन अपार,रोक क्या पाता  कंबल।।

                        -2-

छाया चहुँ दिशि  कोहरा,चादर  ओढ़े   सेत।

वन - उपवन को  घेरता,घेर लिए  हैं  खेत।।

घेर लिए  हैं खेत, पेड़  से टप- टप  बरसे।

ठिठुर रहे तरु कीर,कुकड़ कूँ बोले घर से।।

'शुभम'काँपते ढोर,शीत की व्यापक माया।

कभी मंद -सी धूप,कभी बादल की छाया।।

                         -3-

फूले  गेंदा  खेत   में,   महके बाग   गुलाब।

रंग-बिरंगी तितलियाँ,शीतल- शीतल आब।

शीतल-शीतल आब,ओस कण पादप भारी

चमकें  मुक्ता - बिंदु,भ्रमर मकरंद   पुजारी।।

'शुभम'शीत के गीत,गा रहे मद    में   भूले।

कुंजों में  गुंजार, सुमन  उपवन   में   फूले।।

                        -4-

सरसों फूली खेत में,ज्यों नव चादर  पीत।

शिशिर, शीत हेमंत में,हिल-मिल गाती गीत।

हिल -मिल गाती गीत,कृषक मन में  हर्षाये।

नाच रहा गोधूम,नयन को अति मन भाए।।

'शुभम'मटर की बेल,आजकल भी या बरसों

झूमे  मस्त  किसान, संग में नाचे    सरसों।।

                          -5-

पहने ऊनी  आवरण, बचा  रहे  निज  गात।

नर,नारी,बालक,युवा, काँप रहे  ज्यों  पात।।

काँप रहे ज्यों पात,नहाना कठिन  बड़ा  है।

पिछले से इस साल, शीत ये बहुत  कड़ा है।।

'शुभम' सँभल जा मीत, ठंड पहले से दूनी।

अगियाने  के  पास ,बैठ नर पहने   ऊनी।।


🪴 शुभमस्तु !


०३.०१.२०२२◆४.१५

पतनम मार्तण्डस्य।

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