◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
समांत:आनी।
पदांत : है।
मात्राभार :16.
मात्रापतन: नहीं है।
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
हर जीवन एक कहानी है
सुख-दुख का अपना मानी है
महलों में कोई करे ठाठ
कुछ के सिर पर बस छानी है
औरों पर होली कीचड़ की
अपनी पहचान न जानी है
झाँकता न अपने अंतर में
बतलाता सबकी कानी है
मेरा - मेरा की चाह जगी
कहता जग बात पुरानी है
अपने सुधार से जग सुधरे
सीखना यही सिखलानी है
निज स्वार्थ लिप्त है मनुज यहाँ
सच 'शुभम' बात बतलानी है
🪴 शुभमस्तु !
१७.०१.२०२१◆९.००आरोहणं मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें