बुधवार, 19 जनवरी 2022

सजल 🪴

 

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समांत:आनी।

पदांत : है।

मात्राभार :16.

मात्रापतन: नहीं है।

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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हर   जीवन   एक  कहानी  है

सुख-दुख का अपना  मानी है


महलों  में    कोई   करे    ठाठ

कुछ  के सिर पर बस छानी है


औरों  पर  होली   कीचड़  की

अपनी  पहचान  न  जानी   है


झाँकता  न   अपने   अंतर  में 

बतलाता   सबकी   कानी   है 


मेरा - मेरा   की    चाह   जगी 

कहता  जग   बात   पुरानी  है


अपने   सुधार  से  जग   सुधरे

सीखना  यही   सिखलानी   है


निज स्वार्थ लिप्त है मनुज यहाँ

सच 'शुभम' बात  बतलानी   है 


🪴 शुभमस्तु !


१७.०१.२०२१◆९.००आरोहणं मार्तण्डस्य।

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