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✍️ शब्दकार ©
🌞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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सूरज, चाँद, चाँदनी , तारे।
दिए ईश ने हमको प्यारे।।
मोल ईश ने नहीं लिया है।
जन-जन पर उपकार किया है
हम हैं उनकी देन सहारे।
सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे।।
धरती, हवा, गगन या पानी।
अनल - तेज के जाने मानी।।
नित शुभकारी हैं ये सारे।
सूरज, चाँद, चाँदनी , तारे।।
सरिता ,पर्वत देते पानी।
जड़-चेतन हित बनी कहानी।
बादल ने कृषि, खेत सुधारे।
सूरज, चाँद, चाँदनी , तारे।।
छः ऋतुओं की शोभा न्यारी।
लगे एकरस जीवन भारी।।
प्रभु - रचना से हैं हम हारे।
सूरज,चाँद, चाँदनी , तारे।।
'शुभम'उऋण प्रभु से क्यों होना।
वही जागरण उससे सोना।।
लगा ईश के नित जयकारे।
सूरज, चाँद, चाँदनी , तारे।।
🪴शुभमस्तु !
०४.०१.२०२२◆११.००आरोहणं मार्तण्डस्य।
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