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✍️ शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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ओस भीगी नव कली के पास आने दो।
प्यास से व्याकुल भ्रमर मधुप्राश पाने दो।।
आ रहा है पास ज्यों -ज्यों दूर जाती हो।
घबरा रही स्पर्श से उन्मन लजाती हो।।
ज्यों धरा पर मेघ छाते आज छाने दो।
ओस भीगी नव कली के पास आने दो।।
कौन कलिका जो न चाहे फूल बन महके!
यौवनांगी क्यों न चाहे कीर - सी चहके!!
शुचि कली जो है अछूती महक जाने दो।
ओस भीगी नव कली के पास आने दो।।
राह में कालीन अरुणिम नम बिछाई है।
सद सुगंधों से सुगंधित ज्यों मलाई है।।
स्वप्न को साकार कर लो कसमसाने दो।
ओस भीगी नम कली के पास आने दो।।
चटुल पाटल- सी सजी हो ओढ़ ली चादर।
कब तक रहे अवगुंठनी रूप की गागर।।
तृप्ति की गंगा बहा दो गीत गाने दो।
ओस भीगी नव कली के पास आने दो।।
सबलता में नेह रस का क्यों झरे झरना।
विनयवत उत्थान में ही शुभ प्रणय करना।।
नित 'शुभम' गुंजार बन अलि गुनगुनाने दो।
ओस भीगी नत कली के पास आने दो।।
🪴 शुभमस्तु !
१९.०१.२०२२◆५.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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