सोमवार, 25 नवंबर 2024

गुड़ ही गुणागार! [ व्यंग्य ]

 536/2024


              

©व्यंग्यकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

खीर का स्वाद गुड़ाधारित है।जितना गुड़ ,उतनी खीर मीठी। नहीं तो सीठी की सीठी। न खाए आदमी न चाटे चींटी।ये दुनिया इसी सिद्धान्त पर चल रही है। यही कहानी है जो अविरल रही है।कहने को तो बहुत-सी आदर्श की बातें हैं।बिना गुड़ (दहेज)के तो फ़ीकी सुहाग रातें हैं। न सास खुश न ससुरा,ना ना करते हुए भी नाव जैसा हाथ पसरा।ये हिंदुस्तान है,जहां आदर्श किताबों के लिए हैं और यथार्थ का चमन सजता। हसबैंड का बैंड तभी बजता,जब दुल्हिन के लिए सोने का गहना बजता। क्या ऐसा भी कोई बटलोई है ,जहां बिना गुड़ के बने खीर की रसोई है?

  बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है :मन मन भावे, मुड़ी हिलावे।ये मुड़ी हिलाना ही सुंदर सजीला आदर्श है। मात्र झूठी औपचारिकता।सामने वाले को घोलकर पी जाने की सम्पूर्ण मानसिकता।सभी बटलोइयों में एक ही खीर पक रही है।किसी में चटपटी दाल भाजी नहीं,सब में गाढ़ी -गाढ़ी सफेद खीर रंध रही है। मेरे ख़्याल से इस ब्रह्मांड में आदमी संज्ञाधारी जीव से शातिर ,शरीर और शैतान कोई जीव नहीं है।साँप से भी अधिक जहरीला, कोबरा से भी अधिक फनैला, कीचड़ से भी ज्यादा मैला, धुँए से भी अधिक धुमैला कोई नहीं। सच्चे अर्थों में आदमी एक पहेली है।रसना से गुड़ की भेली है तो भीतर से विष भरी थैली है।

 गन्ना गुड़ का मूल है।उससे चीनी,खांड, मिश्री, शिरका ,राब या शराब कुछ भी बनाइए।अलग-अलग मिठास ,अलग-अलग स्वाद। यह मिठास जिसके भी साथ हो ले,उसी में नया रस घोले। जैसा पात्र वैसा ग्राहक।शराब पसंद को मिश्री पसंद क्यों आएगी ! सबका धन्ना सेठ एकमात्र गन्ना। 

 मिठास का विकास कुछ यों ही नही हुआ।यही वह शै है जो ज़ुबान में हो जाए तो अच्छे -अच्छे को पटखनी खिलाए।प्रकृति ने शहद को भी मीठा ही बनाया।उसे वाणी का गुणगान बनाया।उसे भालू खाए या भलामानुष ,पर मक्खियों के काम नहीं आया। सब कुछ सबके लिए होता भी नहीं है।' जा को काम वा ही है साजे, और करे तो ठेंगा बाजे'। गुड़ में अपना विशेष गुण न होता तो दुनिया में गुड़ गोरी चीनी से पीछे होता। गुड़ अगर गाँव है तो चीनी किसी बनावटी नगर का ठाँव है।कुछ लोग गुड़ बड़े शौक से खाते हैं ,किंतु गुलगुलों से परहेज करते हैं। यह दिखावटी अभिनय सहज ही गले से नीचे नहीं उतरता।हमारे देश में ऐसे भी नेता हुए हैं ,जो खेत में गन्ने के बजाय गुड़ बोते हैं।कोई आलू से सोना बनाने का वहम पाले हुए है।ये हमारे आदर्श लोकतंत्र के नेता हैं !जो ज़ुबान पर नायक और अंदर से सरौता हैं।

 गुड़ बहुत कुछ गुरु के समकक्ष है।गुरु प्रकाश का पुंज है,विस्तारक है तो गुड़ माधुर्य का भंडार है।गन्ने के बाद रसोत्पन्न प्रथम उत्पाद गुड़ ही है।वह गुणागार है।गुणसागर है। गुणाधार है।परंतु वह खारी नहीं ,मीठा है।वह सर्व मिठासों में सर्वजेता (चैम्पियन )है। उसका अनुपात ही खीर के माधुर्य को सुनिश्चित करता है। अरे भई !गुड़ की भेली न दीजिए ,गुड़ जैसा तो बोलिए।

 शुभमस्तु ! 

 24.11.2024●5.00प०मा०

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...