सोमवार, 18 नवंबर 2024

कहाँ विलुप्त हो गई [ नवगीत ]

 523/2024

         

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


गंध गाँव - गाँव  की

पारिजाती छाँव  की

कहाँ विलुप्त हो गई।


गाँव - गाँव कब रहे

नाले-नालियाँ   बहे

ट्रैफिक  का झाम है,

जींस   टॉप  धारतीं

कटाक्ष  बाण मारतीं

बाला परी  नाम  है,

वीडियो  में  नाचतीं

रोड में    कुलांचतीं

नारि सुप्त   हो  गईं।


कंकरीट     के   उगे

जंगलात   में    भगे

लोग  और  कौन  हैं,

नीति है  न चरित्र  है

महकता  ये   इत्र  है

धर्म  - कर्म   मौन  है,

माटी  के  दीप   नहीं

लड़ी ही   लड़ी   दही

रीति   गुप्त  हो  गई।


सड़कों   का  जाल है

कृषक     बेहाल    है

डेंगुओं का   जोर  खूब,

नीम   नहीं   बेर  आम

आदमी हैं सब निकाम

शेष    कहाँ    दूब   है ,

'शुभम्'  कहाँ मेघ  रहे

वेद वाक्य   कौन  सहे

धरा    मुक्त   हो   गई।


शुभमस्तु !


18.11.2024●1.45 प०मा०

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