बुधवार, 13 नवंबर 2024

जिज्ञासा का शोध [दोहा]

 513/2024

          

[जगत, मंच, कठपुतली,जीवन,खिलौना]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                  सब में एक


जगती  जननी जगत की, जिज्ञासा  का शोध।

जितना भी जिसने किया,प्राप्त नहीं सद बोध।।

जगत   पहेली   जीव   की, सचराचर   संसार।

ब्रह्म  मोह  माया  सभी,  करना  उचित  विचार।।


जगती  के  इस मंच पर,अभिनय करते  पात्र।

कोई   राजा   रंक   है,  कोई   जनता    मात्र।।

शोभा  बनता मंच की,  करके नाटक    नित्य।

कविता   का   कोई  धनी,सिद्ध करे औचित्य।।


जीव  कर्म  का  फूल  है, नित  देता है   गंध।

कठपुतली-सा नाचता,कभी न हो   निर्बंध।।

कठपुतली   संकेत   पा, नाच रही   पुरजोर।

अपना तो कुछ भी नहीं,फिर भी भरे  हिलोर।।


जीवन  जाग्रत  खेल है,जब तक घट  में  प्राण।

क्षण-क्षण माँगे छाँव को,तदपि नित्य म्रियमाण।।

सबको जीवन चाहिए, सबको ही  अति  मोह।

करता  कर्म  अकर्म  भी,अन्य जीव से     द्रोह।।


जीव  खिलौना में मगन,खेल रहा  बहु  खेल।

कनक  कामिनी  कामना,की चलती नित रेल।।

बनें  किसी  के  हाथ का,नहीं  खिलौना  मीत।

चलना  स्वयं   विवेक   से,सदा मिलेगी   जीत।।

                  एक में सब

जगत-मंच  पर खेलता,कठपुतली  का खेल।

नित्य खिलौना खोजता, जीवन  बनता  रेल।।


शुभमस्तु !


13.11.2024●3.45आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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