506/2024
[परिवार,तस्वीर,अतीत,कविता,जवान]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
ब्याह हुआ परिवार में, उगी एक दीवार।
नई ब्याहुली आ गई, ईंट-ईंट बीमार।।
सास-ससुर को मानती, नहीं बहू परिवार।
पड़ी खटाई दूध में, रिश्ते तारम - तार।।
घर-घर की तस्वीर का,बदल गया सब हाल।
आधुनिकाएँ आ गईं, ठोक रही हैं ताल।।
नारंगीवत देश की, बनी नई तस्वीर।
बाहर से सब एक सम, अंदर कई लकीर।।
अब अतीत की बात है, वसुधा ही परिवार।
आँगन में दीवार है,चूल्हे जलते चार।।
आछे दिन पाछे गए, उज्ज्वल रहा अतीत।
वर्तमान रोता हुआ, गया समय वह बीत।।
कोई छोटी टाँग है, कोई जैसे बाँस।
कविता थुलथुल नाचती,कहीं शरद का काँस।।
मनमानी कविता करें, नियम धरे सब ताक।
आज लतीफेबाज ही, जमा रहे हैं धाक।।
सीमा पर तैनात हैं, सैनिक वीर जवान ।
रक्षा करते देश की, मातृभूमि की शान।।
वही जवानी धन्य है,करे देश हित काम।
कहना उसे जवान क्या,प्रिय हो केवल चाम।।
एक में सब
कविता से परिवार की,बदलें कवि तस्वीर।
वह अतीत की बात है,थे जवान कवि धीर।।
शुभमस्तु !
06.11.2024●12.15 आ०मा०
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