545/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
वर्जनाएँ तो बहुत हैं
पर मुझे रुकना नहीं है।
दो कदम आगे बढ़ा तो
बढ़ न पाते कदम मेरे
ये करो ऐसा न करना
रात -दिन बंधन घनेरे
आँख खोले यदि चलो तो
पंथ में झुकना नहीं है।
दे रहे उपदेश सब ही
बात उनकी ही सही है
और सब हैं गलत बंदे
सत्य से वह दूर ही है
आज चौराहे पर खड़ा
भयभीत हो छुपना नहीं है।
राह भी मुझको बनानी
मंजिलें पानी मुझे ही
क्यों भटकना है मुझे यों
दीप क्यों अधबर बुझे ही
चल 'शुभम्' पीछे न जाना
मध्य में चुकना नहीं है।
शुभमस्तु !
28.11.2024●10.45आ०मा०
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