543/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
गाँव है तो गाँव का ही
शोर है।
लाल गोला गाँव के पूरब
उगा है
अमराइयों में वानरों का स्वर
जगा है
मुड़गेर पर वह नाचता इक
मोर है।
ले चले हल बैल अपने
खेत में
कृषक नंगे पाँव चलते
रेत में
दूर नभ में दिख रहा
घन घोर है।
ले चली झुनिया कलेवा
शीश धर
उधर होरी व्यस्त अपने
खेत पर
पाँव की चप्पल फ़टी
कमजोर है।
शुभमस्तु !
27.11.2024●12.30प०मा०
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[4:25 pm, 27/11/2024] DR BHAGWAT SWAROOP:
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