गुरुवार, 7 नवंबर 2024

उजालों की दुनिया [ नवगीत ]

 507/2024

             


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


इधर भी उधर भी

उजालों की दुनिया।


दिये हाथ में

सेत आशा के लेकर,

बहे स्वेद के कण

प्रतिदर्श देकर,

दमकती चमकती

मशालों की दुनिया।


भटकाए कोई

अटकाए कोई,

खारों में हमको

गिराए भी कोई,

लहू माँगती है

कसालों की दुनिया।


पूजे  मुझे 

आज संसार सारा,

चाहत यही है

न रहना बिचारा,

मिले बस 'शुभम्' को

दुशालों की दुनिया।


शुभमस्तु !


06.11.2024 ●10.15आ०मा०

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