540/2024
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मिला हाथ में
हाथ चलें हम
साथ ,एकजुट होकर रहना।
मिले कड़ी से
कड़ी ,बने जंजीर
तोड़ कोई क्या पाए!
रुकना झुकना
नहीं राह में
रुख बदलें नव धार बनाए।।
मुर्दे बहते हैं
प्रवाह में
प्रखर धार में उलटा बहना।
जहाँ सपोले
आस्तीन में
हिंद धरा में छिपे हुए हैं।
खाते मुफ़्त अनाज
काटते बाँहें ग्रीवा
हिंद चक्षु के तीक्ष्ण सुए हैं।।
सँभलें -सँभलें
आज गिराते गाज
बाद में कुछ मत कहना।
बँटने वाला ही
कटता है
भूल न जाना देश हमारा।
हम प्रहरी
हम पोषक पालक
नहीं सपोले हमें गवारा।।
'शुभम्' एक हों
सनातनी सब
हमें अंक माँ के क्यों दहना!
शुभमस्तु !
26.11.2024●7.45 आ०मा०
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