गुरुवार, 21 नवंबर 2024

विश्वशांति का स्वर्ग [ दोहा ]

 527/2024

      

[भारत,दिनेश,स्वर्ग,विश्वशांति,पहरेदार]


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                  सब में एक

प्रथम नमन उस भूमि को,भारत जिसका नाम।

जन्मे   पाले   पुष्ट    हो , आएं उसके     काम।।

सकल   विश्व   में  एक ही, भारत हिन्दू   देश।

अलग-अलग भाषा भले,अलग-अलग बहु वेश।।


दिनमणि दिनकर दिव्य हो,कहता जगत दिनेश।

सबको नव्य प्रकाश दो,प्रसरित रश्मि   सुकेश।।

हैं     कृतज्ञ    हम  आपके,भरते दिव्य   प्रकाश।

हे    दिनेश   वंदन   करें,  करते  हो  तम  नाश।।


गुरु  जननी  अपने  पिता,यही स्वर्ग शुभ  धाम।

संतति   वही   कपूत  है, भजे और का   नाम।।

स्वर्ग   नहीं   अन्यत्र   है, नरक  नहीं   अन्यत्र।

जननी  -  पितु  पद  पूजिए, स्वर्ग मिले सर्वत्र।।


जन - जन  मन  बेचैन है,विश्वशांति  की बात।

लगती   है  उपहास - सी,    चरण कुठाराघात।।

विश्वशांति  के  दूत  हम,  बनें  करें    कल्याण।

नर्क   बना   है   विश्व  में,  मानवता म्रियमाण।।


सीमा   पर  दुश्मन  खड़ा, उसे न हमसे   प्यार ।

भारत  की    रक्षा   करें,    बनकर   पहरेदार।।

उत्तर    सीमा    में   अड़ा,  ईश्वर का उपहार।

रक्षक  हिमगिरि   शुभ्रतम,  अपना पहरेदार।।


                  एक में सब

विश्वशांति का स्वर्ग है ,भारत  दिव्य दिनेश।

इसके  पहरेदार हैं,   ब्रह्मा   विष्णु     महेश।।


शुभमस्तु !


20.11.2024●6.30आ०मा०

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