बुधवार, 13 नवंबर 2024

नारंगी के रंग की ! [दोहा गीतिका ]

 511/2024

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


नारंगी   के    रंग    की, एक  अलग   ही  शान।

भिन्न-भिन्न  हैं  फाँक  सब,मिलता नहीं निदान।।


नहीं    शुद्धता    दूध  में, धनिया मिश्रित  लीद,

लोग  मिलावटखोर   हैं,  फिर भी देश  महान।


नेताओं    की   क्या   कहें, देशभक्ति  से   दूर,

धन  की   जिंदा   कोठरी, नेता  की पहचान।


आडंबर   भरपूर    हैं ,   धर्म   ढोंग   में    चूर,

जिसकी भी दुम उठ गई,कटें नाक सँग कान।


परदे     के      पीछे     बड़े,  करते पापाचार,

पहन   बगबगे   सूट वे, मूँछ रहे निज   तान।


कथनी  -  करनी  में  बड़े,जिनके बड़े   विभेद,

उपदेशक  'विख्यात'  वे, पढ़ें साम का   गान।


'शुभम्'  नहीं  लक्षण  भले,पतित रसातल देश,

' विश्वगुरू ' इस  देश  का,  कैसा  ये उनमान।


शुभमस्तु !


11.11.2024●8.00आ०मा०

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