544/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
आदमी को आदमी की
खोज जारी।
देह तो सबकी लगे वे
आदमी हैं
आदमी थे वे सभी कल
आज भी हैं
आदमी ही आदमी पर
बहुत भारी।
नाक मुँह दो आँख तो अच्छे
भले हैं
किंतु पैने दाँत कुछ कहने
चले हैं
आदमी ही आदमी को
तेज आरी।
चमड़ियों के रंग से तू
भरमा नहीं
आदमी में आदमी की
गरिमा नहीं
'शुभम्'समझा शहद-सा जो
विषम खारी।
शुभमस्तु !
28.11.2024●8.45 आ०मा०
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