मंगलवार, 19 नवंबर 2024

पूनमी चाँद [ गीत ]

 524/2024

             

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


उपमाएँ अब

वे सब झूठी

लगने लगीं पूनमी चाँद।


जब से

चंद्रयान पहुँचा है

खुली तुम्हारी सारी पोल,

चंद खिलौना

लेने की भी

जिद झूठी थी मात्र किलोल,

लगते हो तुम

अब छूने में

जैसे हो गीदड़ की माँद।


सूरज दादा

धूप न देते

रूप न सुंदर  हो जाता,

प्रेयसि के

गालों की उपमा

कवि न एक भी दे पाता,

तल पर की

चलने की कोशिश

मिले मात्र खर खाबड़ खाँद।


सागर अति

प्रसन्न हो जाता

जब आती है पूनम रात,

ले हिलोर

उठता गिरता है

कभी सुनामी का हो पात,

'शुभम्' दूर के

ढोल सुहाने

लगते हैं जो करते नाँद।


शुभमस्तु !


19.11.2024●6.15आ०मा०

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