सोमवार, 4 नवंबर 2024

जगती के जीवन बनें [ सजल ]

 498/2024

          


समांत      : आल

पदांत       :अपदांत

मात्राभार   :24.

मात्रा पतन: शून्य


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जाग्रत जीवन-ज्योति कर,जग में करें धमाल।

जगती के  जीवन  बनें, नहीं किसी को  साल।।


सब  जाते  निज  राह में, एकांतिक पथ   एक।

समाधान  निज खोजते,द्रुम की नव्य  प्रवाल।।


सीमा  पर   तैनात  हैं, सैनिक  लाख   हजार।

बने  हुए   हैं   देश  की , सुदृढ़  रक्षक   ढाल।।


करते   हैं  कुछ  भी  नहीं,उपदेशक बन  लोग।

रात -दिवस   बजते  रहें,उनके केवल   गाल।।


बगुला   बैठा   मौन  धर,पहने  वसन   सफेद।

टाँग  उठाई  शून्य   में,  मैं   ही   श्रेष्ठ   मराल।।


शांति  नहीं   संतोष  भी,  जीवन   है   तूफान।

परिजन  उकताए   हुए, नहीं  एक सम  ताल।।


'शुभम्'  बनाना  जिंदगी, सबका अपने  हाथ।

जागा  नहीं  विवेक  तो,  बिगड़े  तेरी   चाल।।


शुभमस्तु !

04.11.2024●4.30आ०मा०

                     ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...