518/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
चले जा रहे हैं
सभी राह अपनी
न अवरोध करना।
किसी के फटे में
न टाँगें फँसाना
न उसको गिला हो,
बिलखते हुए को
इच्छित दिलाना
न तुमको मिला हो,
यथाशक्य भूखे को
भोजन खिलाना
सुख से विचरना।
अपनी ही चिंता में
खोए हैं सारे
मिले नाम नामा,
बँधे शीश पर
लाल पीले मुड़ासे
धार गेरू पजामा,
हँस रहीं सुर्खियाँ
आज अखबार की
दे रहे खूब धरना।
दिखावे में जीना
दिखावे में मरना
यही जिंदगी है,
उदित भानु को ही
मस्तक झुकाना
यही वन्दगी है,
'शुभम्' कैसे समझोगे
दुनिया की चालें
चढ़ना -उतरना।
शुभमस्तु !
15.11.2024●3.45प०मा०
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