502/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
आज तक कब जान पाया!
कौन अपना या बिराना!
प्यार में जिसके जिया हूँ,
स्तन्य-सा उसका पिया हूँ,
लोग कुछ ऐसे लुभाते,
हम वहीं जाकर ठगाते,
मित्रवत उसको समझता,
शत्रु-सा मुझ पर बिखरता,
आदमी का क्या ठिकाना,
कौन अपना या बिराना।
आँधियाँ झंझा सुनामी,
खरब में खेलें छदामी,
पेंडुलम बन लटकता हूँ,
राह में नित भटकता हूँ,
शांति का जंगल रुपहला,
आकृष्ट करता छद्म दहला,
हाथ इंसाँ के बिकाना,
कौन अपना या बिराना।
शब्द हैं बस एकता के,
नाम देवी - देवता के,
बहुरूपियों के रंग छाए,
रूप उनके झिलमिलाए,
चाहतें जन की बड़ी हैं,
सामने अनगिन खड़ी हैं,
चाहते दिल को छिपाना,
कौन अपना या बिराना।
शुभमस्तु !
04.11.2024● 3.30प०मा०
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