शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

सूरज है अति कुनकुना [ दोहा ]

 541/2024

 

[ कुनकुना,धूप,नर्म,ठिठुरन,सूरज]

                  सब में एक

दीवाली के   बाद  ही, दिवस कुनकुना  खास।

सुखद लगा    अति देह को,  गेंदा   भरे   सुवास।।

पीना  जल नित कुनकुना , हो नीरोग  शरीर।

शरद  शिशिर  हेमंत  में, पिएँ  सभी धर  धीर।।


शरमाती  बल  खा  रही,शरद शिशिर  की  धूप।

बदले   प्राची  शाटिका,  नित्य  नए रँग    रूप।।

रूप शरद की धूप - सा,हे कामिनि  अति  रम्य।

नयनों  को  शीतल  करे,रूपसि रूप   प्रणम्य।।


नर्म-नर्म    अति  दूब   है, अमराई   के  मध्य।

पद   परसें   आनंद   दे, रहती  सदा  अबध्य।।

नर्म तुम्हारी   देह   का, सुखद सौम्य अहसास।

बिखरे पाटल पुष्प - से, महके  मधुर    सुवास।।


पौष  मास की  ठंड  में, ठिठुरन करे  धमाल।

हाथ  पाँव  हिम  हो  गए, बुरा गात का  हाल।।

ठिठुरन वाली  ठंड में, पिड़कुलिया  के बोल।

लगते  हैं   रस  घोलते, कर्ण  कुहर में   तोल।।


अब सूरज भी जागते,क्यों प्रतिदिन  सविलंब।

जल्दी  जाते  धाम वे,दिखला अरुणिम   बिंब।।

सूरज   दादा  आपने, ओढ़ लिया  क्यों  शाल!

शीत  सताए    आपको, बिगड़ रहा है   हाल!!

                   एक में सब

सूरज है  अति कुनकुना,  धूप नर्म    कालीन।

ठिठुरन को ले आ गया,खग पशु मनुज प्रवीन।।


शुभमस्तु !

26.11.2024●10.00प०मा०

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