सोमवार, 18 नवंबर 2024

जनी -जनी को प्रिय [ गीतिका ]

 520/2024

          


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जनी- जनी को प्रिय कनबतियाँ।

रस ले- लेकर  सुनतीं  सखियाँ।।


नुक्कड़  पर दो सास  मिल गईं,

चुगली रस से सुरभित जनियाँ।


छींके     पर     टाँगी     मर्यादा,

बही  जा रहीं    गँदली  नदियाँ।


लोकलाज  कुललाज   न   देखें,

अनाघ्रात  मसलीं   नवकलियाँ।


पतित   समाज    गर्त   में  डूबा,

भले बिगड़ती हैं  शुभ छबियाँ।


उपदेशक     उपदेश    दे     रहे,

ग्रीवा   झुका न  देखें   छतियाँ।


'शुभम्'  दिखावे  की  दुनिया है,

गिना  रहे  औरों   की   कमियाँ।


शुभमस्तु !


18.11.2024● 6.45आ०मा०

                   ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...