520/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जनी- जनी को प्रिय कनबतियाँ।
रस ले- लेकर सुनतीं सखियाँ।।
नुक्कड़ पर दो सास मिल गईं,
चुगली रस से सुरभित जनियाँ।
छींके पर टाँगी मर्यादा,
बही जा रहीं गँदली नदियाँ।
लोकलाज कुललाज न देखें,
अनाघ्रात मसलीं नवकलियाँ।
पतित समाज गर्त में डूबा,
भले बिगड़ती हैं शुभ छबियाँ।
उपदेशक उपदेश दे रहे,
ग्रीवा झुका न देखें छतियाँ।
'शुभम्' दिखावे की दुनिया है,
गिना रहे औरों की कमियाँ।
शुभमस्तु !
18.11.2024● 6.45आ०मा०
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