522/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
मौजूदगी
तुम्हारी पल - पल
बहुत -बहुत मुझको अखरी है।
नहीं ग़वारा
हुआ आज तक
बारम्बार तुम्हारा आना।
खड़ी हुई हो
थाल सजाकर
दीप जलाए यों मुस्काना।।
ध्यान टिका है
एक बिंदु पर
किंतु बुद्धि चंचल चकरी है।
कालचक्र
कब रुकता कोई
उसमें भी आगमन तुम्हारा।
चिंतातुर
कर देता मन को
पीना पड़े सलिल जब खारा।।
ऊँट खड़ा हो
मरुथल में ज्यों
खड़ी सामने यह बकरी है।
कहते होता
मधुर - मधुर फल
उसकी भी तो सीमा कोई।
विदा प्रतीक्षा
जब - जब होती
खुशियाँ भरी आँख तब रोई।।
'शुभम्' समय
जब शुभागमित हो
हो आबाद घड़ी सँकरी है।
शुभमस्तु !
18.11.2024● 12.45 प०मा०
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