शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

केवल सियासत [नवगीत]

 542/2024

          

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


एक कोना भी नहीं खाली

केवल सियासत।


मंदिरों या मस्जिदों

केवल वही

स्कूल कालेज में वही

बहती  रही

जागीर है उसकी 

उसकी रियासत।


मत समझना आदमी

है आदमी

शक सुबह करना

सदा है लाजमी

नज़र हो केवल भरी

मन में हिकारत।


आँख में घड़ियाल के

आँसू भरे

वेदना दुख दर्द के

द्रुम हैं हरे

आदमी की आदमी से

बस तिजारत।


शुभमस्तु !


27.11.2024●10.30आ०मा०

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