सोमवार, 25 नवंबर 2024

भरी विविधता [ सजल ]


537/2024

            

©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


समांत        : अण

पदांत         : में

मात्राभार     : 16.

मात्रा पतन   : शून्य।


भरी  विविधता  जग  जनगण   में।

नहीं   लीन   वे      रस-वर्षण   में।।


धूल  लदी    है    ढेरों     मन   पर।

रुष्टा -  तुष्टा   वे      क्षण -क्षण  में।।


कोयल  कम  कागा    ही   बसते।

रुचि  जिनकी है नित बस रण में।।


अहंकार    की     काई       छाई।

रमता  है      मन     संघर्षण   में।।


नैतिकता   की   पूछ    न    कोई।

झूठ  बिका करता  है    पण  में।।


ढूँढ़  रहे       मंदिर    मस्जिद  में।

बसा  हुआ है प्रभु कण- कण में।।


है  विचित्र अति  हाल जगत का।

'शुभम्' मिले कैसे  रब   व्रण  में।।


शुभमस्तु !


25.11.2024●6.15आ०मा०

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