537/2024
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
समांत : अण
पदांत : में
मात्राभार : 16.
मात्रा पतन : शून्य।
भरी विविधता जग जनगण में।
नहीं लीन वे रस-वर्षण में।।
धूल लदी है ढेरों मन पर।
रुष्टा - तुष्टा वे क्षण -क्षण में।।
कोयल कम कागा ही बसते।
रुचि जिनकी है नित बस रण में।।
अहंकार की काई छाई।
रमता है मन संघर्षण में।।
नैतिकता की पूछ न कोई।
झूठ बिका करता है पण में।।
ढूँढ़ रहे मंदिर मस्जिद में।
बसा हुआ है प्रभु कण- कण में।।
है विचित्र अति हाल जगत का।
'शुभम्' मिले कैसे रब व्रण में।।
शुभमस्तु !
25.11.2024●6.15आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें