500/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
नाम बड़े हैं
दर्शन छोटे
कोई स्वयं महान कहे ।
कोई पंत
निराला कोई
कोई तुलसी सूर कबीर,
कालिदास
कोई कहलाता
पीट रहे वे थकी लकीर,
मैं महान कवि
शायर मैं ही
मैं कविता की शान कहे।
सिर की मणि
कवि गौरव कहता
छायाप्रति में मुस्काता,
पगड़ी पीली
शीश सुहाती
नई चाल में इठलाता,
मैं खोजी हूँ
नए छंद का
अपना अनुसंधान कहे।
क्रय विक्रय का
खेल चला है
पुरस्कार सम्मान का,
उतनी मीठी
खीर बनेगी
जितना गुड़ में दान का,
'शुभम्' बाढ़
कवियों की आई
स्वयं काव्य की खान कहे।
शुभमस्तु !
04.11.2024●12.30प०मा०
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