514/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
धकिया रही
माघ को भीगी
शरद सुहानी शाम।
बादल के
स्वेटर को पहने
निकल रहा है घाम,
कलकल नदी
गा रही गुनगुन
जपती माला राम,
लिए बैल हल
निकल पड़े हैं
खेतों में सब गाम।
माघी पूनों
शॉल ओढ़कर
निकल पड़ी इस ओर,
ब्रह्म मुहूरत
पावन वेला
मुंडगेरी पर मोर,
स्नान करें
घन अंधकार में
ललना ललित ललाम।
देवठान को
सुप्त देवगण
जाग गए हे मीत,
परिणय के
बंधन में बँधते
युवती-युवक सप्रीत,
'शुभम्' सुप्त
सब देव जगे तो
क्यों न जगे ये काम?
शुभमस्तु !
13.11.2024●9.45आ०मा०
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