सोमवार, 18 नवंबर 2024

रस ले- लेकर [ सजल ]

 519/2024

               

समांत      : इयाँ

पदांत       :अपदांत

मात्राभार   :16

मात्रा पतन  : शून्य


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जनी- जनी को प्रिय कनबतियाँ।

रस ले- लेकर  सुनतीं  सखियाँ।।


नुक्कड़  पर दो  सास  मिल गईं।

चुगली रस से सुरभित  जनियाँ।।


छींके     पर     टाँगी     मर्यादा।

बही  जा  रहीं  गँदली    नदियाँ।।


लोकलाज  कुललाज   न   देखें।

अनाघ्रात  मसलीं   नवकलियाँ।।


पतित   समाज    गर्त   में  डूबा।

भले बिगड़ती हैं  शुभ छबियाँ।।


उपदेशक     उपदेश    दे     रहे।

ग्रीवा   झुका न  देखें   छतियाँ।।


'शुभम्'  दिखावे  की  दुनिया है।

गिना  रहे  औरों   की   कमियाँ।।


शुभमस्तु !


18.11.2024● 6.45आ०मा०

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