519/2024
समांत : इयाँ
पदांत :अपदांत
मात्राभार :16
मात्रा पतन : शून्य
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जनी- जनी को प्रिय कनबतियाँ।
रस ले- लेकर सुनतीं सखियाँ।।
नुक्कड़ पर दो सास मिल गईं।
चुगली रस से सुरभित जनियाँ।।
छींके पर टाँगी मर्यादा।
बही जा रहीं गँदली नदियाँ।।
लोकलाज कुललाज न देखें।
अनाघ्रात मसलीं नवकलियाँ।।
पतित समाज गर्त में डूबा।
भले बिगड़ती हैं शुभ छबियाँ।।
उपदेशक उपदेश दे रहे।
ग्रीवा झुका न देखें छतियाँ।।
'शुभम्' दिखावे की दुनिया है।
गिना रहे औरों की कमियाँ।।
शुभमस्तु !
18.11.2024● 6.45आ०मा०
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