गुरुवार, 7 नवंबर 2024

कैसे हो सुमङ्गल [अतुकांतिका ]

 509/2024

             


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कभी चाँद

कभी सूरज 

कभी तारे,

सबका अपना ही मान,

सबके प्रति

कृतज्ञता ज्ञापन 

सबका ही ध्यान।


क्षिति जल पावक

गगन और समीर,

मिट्टी पत्थर

सोना चाँदी सबकी

अपनी तकदीर,

लोहा भी ताँबा भी

गंगा यमुना सुतीर।


सबको ही पूजा

पर आदमी नहीं

आदमी के लिए आदमी,

एक दूजे के 

रक्त का प्यासा !

खड़ा है लिए हाथ में

भोथा- सा गँड़ासा !


इधर  धर्म

उधर हिंसा !

कैसा विचित्र

यह किस्सा!

शांति का संवाहक,

जान का ग्राहक।


मानवता के नाम पर

मानव ही एक दाग़,

जिधर भी दृष्टि जाए

आग ही आग !

अरे !अब तो उठ जाग।


कैसी तेरी शिक्षा

कैसी है इबादत!

सब ढोंग आडंबर

किसने दी इजाजत,

शहर भी गाँव भी

जंगल के जंगल,

कैसे हो 'शुभम्'

धरती पर सुमंगल!


शुभमस्तु !


07.11.2024●5.00प०मा०

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