515/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
चूल्हे नहीं
सुलगते भट्टे
जागीं कनक -खदान।
जिस-तिस
किसी प्रकार बटोरे
भर-भर झोली वोट,
गर्म-गर्म
सिंक रहीं चपाती
पिस्ता सँग अखरोट,
जीरा पड़ा
ऊँट के मुँह में
मेरा देश महान।
भूखे को
भूखा मरना है
विधि का यही विधान,
स्वर्ण सेज पर
ऊँघ रहे हैं
धनिक रजाई तान,
विकसित करें
देश ये सारा
नहीं लिया है ठान।
सबकी अपनी
अपनी ढपली
अलग -अलग संगीत,
बहरे कान
जीभ पर चीनी
एक न अपना मीत,
'शुभम्' देश
भगवान भरोसे
जनता टूटी छान।
शुभमस्तु !
13.11.2024● 11.30 आ०मा०
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