मंगलवार, 19 नवंबर 2024

राम न मिलते [ नवगीत ]

 525/2025

         

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


राम न मिलते

शिला अहल्या

नारी कैसे हो जाए!


पुरुष परुषता 

सिद्ध कर रहे

खोज राम की जारी है,

फ्रिज में

फ्रीज़ नहीं फल सब्जी

खंडित मिलती नारी है,

जिसने छुआ 

नहीं सीता को

रावण दानव कहलाए?


दाँव लगाया

अपना तन - मन

कहलाती घरवाली है,

रार-प्यार होते

न अकेले

बजे न एकल ताली है,

एक - एक मिल

दुनिया बनती

तेरा घर वह बन जाए।


कितने यहाँ

विभीषण बैठे

डाल गले तुलसी माला,

भेद खोलते

देश नाश को

चर्म चक्षु पर है जाला,

'शुभम्' यहाँ

कलयुग पसरा है

राम कहाँ से आ पाए!


शुभमस्तु !


19.11.2024●10.45 आ०मा०

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