517/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
बहुत ही सहज है
सिद्धांतों की संगमरी सड़क
बना लेना,
किंतु चलते वक्त
पगडंडियाँ खोजना!
मनुष्यता तो नहीं है।
बेहतर हैं ऐसे लोगों से
ढोर खग जल जीव सभी
जो समय के सिद्धांत के
पालक हैं,
वे भटकते नहीं
श्रेयता के लोभ में
पथ बदलते नहीं।
चाहिए तुम्हें बड़ा नाम
मुक़ाम और भी ऊँचा
तैयार हो तुम
अपने पतन के लिए,
सराहनीय नहीं यह,
मानवता भी नहीं।
डटे रहो 'शुभम्'
मील के पत्थर की तरह
अविचल अडिग,
राहगीरों भटके हुओं को
रास्ता तो दिखलाओगे!
बिना कुछ बोले
बिना अँगुली किए
पूजे जाओगे।
शुभमस्तु !
14.11.2024●5.15प०मा०
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