मंगलवार, 5 नवंबर 2024

झलक गाँव के जीवन की [ गीत ]

 503/2024

     

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


झलक गाँव के

जीवन की

जीवंत हो गई।


छप्पर तले

सजे हैं बर्तन

एक मेज पर,

रोटी सेंक रही

चूल्हे पर

 पुता हुआ घर,

ननद और

भाभी ओटे पर

कहाँ खो गईं।


आँगन बीच

बिछी खटिया पर

कपड़े लादे,

बकरी बँधी

नाद पर चरती

परिजन  सादे,

लिए परात

धो रही कपड़े

व्यस्त हो गई।


चुगतीं दाने

गौरैया सब

बिखरा-बिखरा,

मस्ती का जीवन

निर्मल है

सुथरा -सुथरा,

'शुभम्' नहीं

कोई खाली 

क्या चीज हो गई।


शुभमस्तु !


04.11.2024●11.00 प०मा०

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