528/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जब तक जगत में झूठ है
सब कुछ करें यह छूट है,
सत्य से नहीं चलता जीवन
न मानो तो सियासत झाँक लो।
सत्य एक कागज की रसीद है,
झूठ ही जज वही वकील है,
बैठा हुआ है सत्य किसी कोने में,
झूठ हर खास-ओ-आम को मुफ़ीद है।
झूठ से कहीं कोई नहीं डरता,
सभी को मात्र सत्य का भय है,
झूठ से चल रही रोज दाल-रोटी,
वही तो घूमता -फिरता निर्भय है।
बीसियों वर्ष हुए सत्य फाइलों में कैद मिला,
केस चलते रहे न्याय अब तक न
दिखा,
सत्य के ऊपर झूठ का दुशाला काला,
चलता यों ही रहा झूठ का सिलसिला।
झूठ से किसी को भी खुश कर लो,
रुई की जगह रजाई में भुस भर लो,
झूठ की धुरी पर धरती घूमती है,
सत्य को तो पैसों से क्रय कर लो।
शुभमस्तु !
21.11.2024● 9.00प०मा०
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[12:28 pm, 22/11/2024] DR BHAGWAT SWAROOP: 529/2024
पंचर बॉय
[अतुकांतिका]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
किसी का
खोल दिया टायर,
किसी के पहिए की
निकाल दी हवा,
कोई खड़ी है
ऊपर उठाए टाँगें
सीट के बल,
कैसा है ये
पंचर वाला मुआ।
सभी को उलझाना
सभी को फँसाना
न किसी का काम
पूरी तरह निबटाना,
वसूलना भी तो है
उससे इसी काम की कीमत,
है कोई जो उठा ले जाए
अपनी ही बाइसिकिल
किसी की हिम्मत ?
व्यवसाय का फॉर्मूला
है यही सब
सबको उलझाए रखो,
बारी - बारी से काम होगा
यही सिद्धांत
दिखाते रहो!
पंचर वालों की तरह ही
प्रकाशन का पहिया
घूमता है,
तब कहीं जाके
सफलता के पाँव चूमता है।
किसी की हवा
निकले तो निकले,
उन्हें तो वसूलने ही हैं
उनसे अपने पैसे जितने,
किसी का वाल्व बदला
किसी को काटा चिपकाया
देखते ही देखते
बाइसिकिल को
सीधा खड़ा करवाया।
शुभमस्तु !
22.11.2024● 12.30 प०मा०
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[2:08 pm, 22/11/2024] DR BHAGWAT SWAROOP: 530/2024
कवियों की बारात
[ नवगीत ]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
देखो कैसी
चली जा रही
कवियों की बारात।
सभी कह रहे
मैं ही दुलहा
कविता मेरा प्यार।
मेरे ही सँग
भाँवर पड़नी
दूर हटो जी यार।।
देखो तो
सौभाग्यकांक्षिणी
संग मने शुभ रात।
नवगीतों की
करे सवारी
कोई दोहा छंद।
कुंडलिया
अतुकांत लिखे वह
तोड़ छंद के फंद।।
व्यंग्य तीर में
मस्ती करता
'शुभम्' साँझ या प्रात।
सूत्रधार
नाटक का कोई
लिखे कहानी लेख।
सभी मस्त
मदिरा में अपनी
नया तमाशा देख।।
ऋतुओं के रँग
शरद शिशिर सँग
है वसंत बरसात।
ग़ज़लकार की
पूछ न बातें
उर्दू का उस्ताद।
लिखे गीतिका
हिंदी में जो
कहे सजल का नाद।।
जितने कवि
उतनी कलमें हैं
करता कोई घात।
गद्य - पद्य
कविता व्यंग्यों के
सभी स्वाद का घाट।
संगम यहीं
'शुभम्' के सँग है
सभी रंग के ठाट।।
बच्चों के सँग
बच्चा होता
करता तुतली बात।
शुभमस्तु !
22.11.2024●2.00प०मा०
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