बुधवार, 13 नवंबर 2024

करते रहो उद्योग धंधा [ नवगीत ]

 516/2024

      

©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


करते रहो

उद्योग धंधा

फूलता -फलता तुम्हारा।


वेश में हैं

राज कितने

निहित है उद्धार सारा,

देश पीछे

आप आगे

आप ही उसका सहारा,

जो कहो 

वह देश सेवा

जो करो चंदा-सितारा।


सैकड़ों 

अपराध करके

दूध के धोए हुए हो,

रक्तरंजित

हाथ  भी ले

खा रहे मीठे पुए हो,

सुनते नहीं

विनती किसी की

ऊँचा चढ़ा तव भाल पारा।


आदमी को

आदमी तुम

कब समझ लो जानना है,

किस लोक से

आए हुए हो

अब हमें पहचानना है,

मुक्त होना

चाहते सब

कब करो जग से किनारा।


शुभमस्तु !


13.11.2024●4.45 प०मा०

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