सोमवार, 25 नवंबर 2024

कवियों की बारात [ नवगीत ]

 530/2024

               

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


देखो कैसी

चली जा रही

कवियों की बारात।


सभी कह रहे

मैं ही दुलहा

कविता मेरा प्यार।

मेरे ही सँग 

भाँवर पड़नी

दूर हटो जी यार।।

देखो तो

सौभाग्यकांक्षिणी

संग मने शुभ रात।


नवगीतों की

करे सवारी

कोई दोहा छंद।

कुंडलिया

अतुकांत लिखे वह

तोड़ छंद के फंद।।

व्यंग्य तीर में

मस्ती करता 

'शुभम्'  साँझ या प्रात।


सूत्रधार

नाटक का कोई

लिखे कहानी लेख।

सभी मस्त

मदिरा में अपनी

नया तमाशा देख।।

ऋतुओं  के रँग

शरद शिशिर सँग

है वसंत बरसात।


ग़ज़लकार की

पूछ न बातें

उर्दू का उस्ताद।

लिखे गीतिका

हिंदी में जो

कहे सजल का नाद।।

जितने कवि

उतनी कलमें हैं

करता  कोई  घात।


गद्य - पद्य

कविता व्यंग्यों के

सभी स्वाद का घाट।

संगम यहीं

'शुभम्' के सँग है

सभी रंग के ठाट।।

बच्चों के सँग

बच्चा होता

करता तुतली बात।


शुभमस्तु !


22.11.2024●2.00प०मा०

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