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✍️ शब्दकार ©
🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कटुता के इस कठिन काल में,
अपने मृदु व्यवहार रहें।
परहित के कारण तन-मन से,
चाहे अत्याचार सहें।।
सबके जीवन में आते हैं,
ऊँच - नीच उजले - काले।
एक समान नहीं होते दिन,
सुमन कभी चुभते भाले।।
सुख के दिन जब नहीं रहे तो,
दुःख मिटे ज्यों धार बहें।
कटुता के इस कठिन काल में,
अपने मृदु व्यवहार रहें।।
निशा दिवस का क्रम चलता है,
जाती निशा दिवस आता।
कभी अँधेरी काली रातें,
कभी उजाला छा जाता।।
नहीं नियंत्रण कभी काल पर,
काल कहे हम वही कहें।
कटुता के इस कठिन काल में,
अपने मृदु व्यव्हार रहें।।
जीवन की साँसें निश्चित हैं,
घटती - बढ़ती नहीं कभी।
इच्छाओं का अंत नहीं है,
यही ध्यान में रखें सभी।।
हवन - कुंड में समिधा जैसे,
वैसे अपनी साँस दहें।
कटुता के इस कठिन काल में,
अपने मृदु व्यवहार रहें।।
धीरज सदा उचित ही होता,
शांति सुभगता देती है।
क्रोध नसाता है विवेक को,
कटुता दुख की खेती है।।
शांति प्रेम आंनद बढ़ाते,
क्यों न सुखद हम राह गहें।
कटुता के इस कठिन काल में,
अपने मृदु व्यवहार रहें।।
अहंकार ने स्वार्थ वृद्धि कर,
मानवता का ह्रास किया।
पड़ा अकेला रोता मानव,
नहीं सुखद पल कभी जिया।
'शुभम' विश्व में शांति बढ़ाएँ,
सबसे प्रियता से निबहें।
कटुता के इस कठिन काल में,
अपने मृदु व्यवहार रहें।।
🪴 शुभमस्तु !
३०.१२.२०२१◆६.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।
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