शनिवार, 14 जनवरी 2023

सौख्य वृष्टि चहुँ ओर 🇮🇳 [ रूप घनाक्षरी ]

 26/2023


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छंद विधान:

1.यह 32 वर्ण का एक वर्णिक छंद है।

2.इसमें 16,16 वर्ण पर यति होता है।

3.अंत में गुरु लघु का  ($1)आना अनिवार्य है।

                                                  4.सभी सम पद, विषम -विषम -सम पद, सम विषम -विषम पद उत्तम होते हैं, 

किंतु विषम -सम-विषम पद वर्जित हैं।

5.इसमें चार समतुकांत चरण होते हैं।

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                         -1-

आया   गणतंत्र  पर्व,  उर  में उत्साह   गर्व,

संविधान  मान्य सर्व,झूम उठी सद्य    भोर।

एकतान  पग - ताल,  हर्ष   में विभोर लाल,

नाच  रही डाल-डाल, रोमांचित  पोर-पोर।।

एक ध्वज  तीन  रंग ,लाट  भी अशोक संग,

गौर  है  हिमाद्रि  तुंग,कूक  रहे  मत्त  मोर।

रहें  सह  हेल -मेल, डाल  शत्रु के  नकेल,

खेल  रंग  भरे  खेल, शांति रहे चहुँ  ओर।।


                         -2-

एकता  का  एक  मंत्र,  सुदृढ़ हो  लोकतंत्र,

आप  हम  सब   यंत्र,गूँज  उठे शून्य  छोर।

स्वावलंबिता   आधार, शांति प्रेम का प्रसार,

धारें उच्चता विचार, भाव में हो -हो विभोर।।

देश  प्रेम नीति गीत, जाए जम  ठोस शीत,

कंठ  उर हों  सतीत , आनंदाश्रु की  हिलोर।

देश  हो  अखंड  एक, देश जन  धीर   नेक,

होवे जाग्रत  विवेक, खिलें पुण्य चहुँ ओर।।


                          -3-

खड़ा  खेत में किसान, अड़ा सीमा पे जवान,

देश  दोनों  से  महान, लहकती  कोर - कोर।

अन्न  फल दत्त   एक, रक्षा- सूत्र  हैं   अनेक,

राष्ट्रधर्म  मात्र   टेक, पावनी भू  को अगोर।।

हित भरा शब्दकार,दिया काव्य को  निखार,

भाव- माल्य  उपहार,चमकती स्वर्ण - भोर।

नगर  या  गाँव- गाँव ,खेत वन सैन्य-  ठाँव,

धूप-मेघ, द्रुम-छाँव,सौख्य वृष्टि  चहुँ   ओर।।


                         -4-

देश  के  महान   वीर, थामे  हुए  शमशीर,

शत्रु- वक्ष  दिया चीर,कंपित हैं छोर-छोर।

शांतिपूर्ण   रहे  देश,  धरे  कोई  देह   वेश, 

भागें  नहीं किंतु लेश,देशभक्ति की  हिलोर।।

छोड़ा घर परिवार, मोह-लोभ को  निवार,

किए रिपु  मार छार,  सीमा में प्रविष्ट  चोर।

हमें   है  महान  गर्व,करें अभिमान   खर्व,

शत्रु -दल   नष्ट  सर्व, धूम मची चहुँ  ओर।।


                         -5-

बीत  रही   श्याम  रात, होने लगी  है प्रभात,

माघ मास  शीत गात, नाच उठे  छत  मोर।

कोहरा    सफेद  धूम, मेदिनी अनंत    चूम,

यहाँ - वहाँ  घूम- घूम,दूध-सी उजेली  भोर।।

शीत ने  सताए  कीर,खग -वृंद   हैं   अधीर,

मात्र  तमचूर  वीर ,गली- गली करें    शोर।

गाय, भैंस,   मेष  ढोर,ठंड  है प्रचंड    घोर,

सुन्न  हुआ  पोर -पोर,छाई शीत  चहुँ  ओर।।


🪴शुभमस्तु !

14.01.2023◆1.00

पतनम मार्तण्डस्य।

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