45/2023
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छंद- विधान:
1.कुन्दलता सवैया चार चरण का एक वर्णिक छंद है।
2.इस छंद में 08 सगण (112×8)+ 02 लघु (11)=26 वर्ण होते हैं।
3.चारों चरण समतुकांत होते हैं।
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✍️ शब्दकार ©
👩🏻🍼 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
निज अंक लिटाइ रिझाइ रही,
जननी अपने सुत को मनभावन।
दृग मूँद अपार करे विनती,
प्रभु देंइ सदा सुख दुःख नसावन।।
तन को नहिं दुःख मिले शिशु को,
घर- द्वार रहे नित ही अति पावन।
मुख चूमि रही अधरा धरि के,
सुत माघ समीप झुका जनु फागन।।
-2-
जननी सम शेष नहीं ममता,
पितु नेह सदा अगला पद धारक।
तन चूमि कहे सुत सों जननी,
मम तू जग-जीवन पावन तारक ।।
गुण गाइ रिझाइ ख़िलावति है,
नहिं देखति नेंकहु बाधक कारक।
तन दो वरु एकहि प्राण कहे,
सहिकें विलगाव रहे नहिं हारक।।
-3-
पहले - पहले सुख संतति को,
उमगाइ रहे हिय को रस-सागर।
शत बार निहारति है मुख को,
कबहूँ निज अंकन धारि उजागर।।
नव मास धरे निज कोख जनी,
रचि पूरण आवत संतति बाहर।
जननी पितु पूरक आपस में,
उढ़काइ रहे सत नेहिल गागर।।
-4-
गुरुता सुत की तब जानि पड़े,
जब मान करे सुख देय सुपावन।
तन से मन से नहिं त्रास मिले,
तन के मन के सब दुःख नसावन।।
उर में नित नेह हिलोर भरें,
तप ग्रीषम मास बनावत सावन।
चरितावलि गान स्वदेश करे,
लगता जन को अति ही मनभावन।।
-5-
जननी- पद नाक समान सदा,
कवि कोविद काव्य करें सुखदायक।
निज अंक सँवारि सजाइ रखे,
समता नहिं और सुमातु सहायक।।
प्रतिपालक जन्म प्रदायक माँ,
सुत कारक एक पिता वर नायक।
विष कारक एक समाज रहे,
उकसाय चलाइ रहे नित सायक।।
🪴 शुभमस्तु !
24.01.2023◆12.15 पतनम मार्तण्डस्य।
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