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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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त्याग रहा जो सुख को अपने।
स्वर्ण बनाया उसको तप ने।।
सभी जानते लेना - पाना।
जाए एक न पाई - दाना।।
दुर्लभ भाव त्याग का होता।
शांति-संग अपरिग्रह सोता।।
संत दिगम्बर को पहचानें।
त्याग नहीं उनका लघु मानें।।
मोह - त्याग बलिदानी जाते।
भारत माँ का मान बढ़ाते।।
घर परिजन तज संतति दारा।
करते गृह से वीर किनारा।।
माया, मोह त्याग वन जाते।
सन्यासी निज देह तपाते।।
बहती वहाँ ज्ञान की गंगा।
धन - नद में डूबा मतमंगा।।
त्यागी जन तपसी हो पाता।
गीत ईश - सुमिरन के गाता।।
भक्ति माँगती त्याग तुम्हारा।
सुख का भोग न लगता प्यारा।
चाहे ज्ञान विमल अध्येता।
नहीं त्याग अपनाता नेता।।
सुख की अर्थी पर वह सोता।
ऊपर - नीचे भरता गोता।।
'शुभम्' त्याग को जो अपनाए।
दिनकरवत नभ में छा जाए।।
नई-नई कृति कविजन लाते।
साहित्यिक नभ में गहराते।।
🪴शुभमस्तु!
30.01.2023◆10.30 आरोहणम् मार्त्तण्डस्य।
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