बुधवार, 4 जनवरी 2023

घरनी घर के द्वार पर 🏕️ [ कुण्डलिया]

 006/2023


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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

घरनी घर के द्वार पर,खड़ी लिए कर  सूप।

करे प्रतीक्षा कंत की,कब आए   उर-भूप।।

कब   आए  उर-भूप, उदासी ऐसी    छाई।

भूल गई  गृह-काज, छोड़कर सेज   रजाई।।

'शुभं'कमर को टेक,दुखी थी जो भर रजनी।

रही  एकटक   देख, द्वार  पर प्यारी घरनी।।


                         -2-

नारी विरहिन हाथ में,लिए सींक  का सूप।

कंत-प्रतीक्षा में खड़ी,है उदास मुख - रूप।।

है उदास मुख-रूप,नहीं अधरों  पर  लाली।

आँखें खोले मौन,न रुचती भोजन - थाली।।

'शुभम्' न आए चैन,एक पल लगता भारी।

कब आएँगे  नाथ,प्रतीक्षारत गृह - नारी।।


                         -3-

पीली   साड़ी   देह  पर, पहने सुंदर    नारि।

सजन-प्रतीक्षा में खड़ी, विधना की अनुहारि

विधना की अनुहारि,विरहिणी भरे   उदासी।

नैना  तकते    राह,    गेह-पट  पूरनमासी।।

'शुभम्' न झिपते नेत्र,पलक हैं गीली-गीली।

भरे हुए ज्यों अश्रु,पहन कर साड़ी   पीली।।


                         -4-

पूछे क्यों  कोई  नहीं, किसकी तकती   राह।

बाट जोहती हो खड़ी,पिया मिलन  की चाह।

पिया मिलन की चाह,सूप क्यों कर में जकड़े

प्रतिमा-सी अनुहारि,अंग ज्यों तन के अकड़े

'शुभम्' न भावे गेह, लगें गृह- कारज  छूछे।

बात न  ननदी सास, एक विरहिन  से पूछे।।


                         -5-

भाए बिन साजन नहीं,घर बाहर गृह-काज।

कंत अभी आए नहीं, वृथा लगें सुख-साज।।

वृथा लगें सुख-साज,द्वार पर बाट   जोहती।

गहे हाथ  में  सूप,शाटिका पीत   शोभती।।

'शुभम्'रैन में नींद, नहीं कल दिन  में  पाए।

भावे अन्न न भूख,नहीं कुछ तिय को भाए।।


🪴 शुभमस्तु !


03.01.2023◆4.00प.मा.


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