006/2023
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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
घरनी घर के द्वार पर,खड़ी लिए कर सूप।
करे प्रतीक्षा कंत की,कब आए उर-भूप।।
कब आए उर-भूप, उदासी ऐसी छाई।
भूल गई गृह-काज, छोड़कर सेज रजाई।।
'शुभं'कमर को टेक,दुखी थी जो भर रजनी।
रही एकटक देख, द्वार पर प्यारी घरनी।।
-2-
नारी विरहिन हाथ में,लिए सींक का सूप।
कंत-प्रतीक्षा में खड़ी,है उदास मुख - रूप।।
है उदास मुख-रूप,नहीं अधरों पर लाली।
आँखें खोले मौन,न रुचती भोजन - थाली।।
'शुभम्' न आए चैन,एक पल लगता भारी।
कब आएँगे नाथ,प्रतीक्षारत गृह - नारी।।
-3-
पीली साड़ी देह पर, पहने सुंदर नारि।
सजन-प्रतीक्षा में खड़ी, विधना की अनुहारि
विधना की अनुहारि,विरहिणी भरे उदासी।
नैना तकते राह, गेह-पट पूरनमासी।।
'शुभम्' न झिपते नेत्र,पलक हैं गीली-गीली।
भरे हुए ज्यों अश्रु,पहन कर साड़ी पीली।।
-4-
पूछे क्यों कोई नहीं, किसकी तकती राह।
बाट जोहती हो खड़ी,पिया मिलन की चाह।
पिया मिलन की चाह,सूप क्यों कर में जकड़े
प्रतिमा-सी अनुहारि,अंग ज्यों तन के अकड़े
'शुभम्' न भावे गेह, लगें गृह- कारज छूछे।
बात न ननदी सास, एक विरहिन से पूछे।।
-5-
भाए बिन साजन नहीं,घर बाहर गृह-काज।
कंत अभी आए नहीं, वृथा लगें सुख-साज।।
वृथा लगें सुख-साज,द्वार पर बाट जोहती।
गहे हाथ में सूप,शाटिका पीत शोभती।।
'शुभम्'रैन में नींद, नहीं कल दिन में पाए।
भावे अन्न न भूख,नहीं कुछ तिय को भाए।।
🪴 शुभमस्तु !
03.01.2023◆4.00प.मा.
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