मंगलवार, 10 जनवरी 2023

प्राची का अरुणिम सु-भाल है 🪷 [ गीतिका ]

 16/2023


■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

प्राची   का    अरुणिम    सु - भाल   है।

हटा     तमस      का    इंद्रजाल      है।।


संग      उषा     के      दिनकर    आया,

मंद     -    मंद       चलता   मराल    है।


आँखें       खोल       शयन   को    त्यागें,

नाच    उठी     तरु     डाल- डाल      है।


कलियाँ           मुस्काईं      बेलों     पर,

सूरज     का   मुख  लाल - लाल       है।


सरक      रहीं       सुइयाँ  घड़ियों   की,

कहते     सब    रुकता   न  काल      है।


चलते      रहें         यही      है    जीवन,

सबकी     अपनी      अलग  चाल     है।


'शुभम्'     प्रगति     की  किरण    हजारों,

रंग        दमकता       ज्यों   प्रवाल    है।


🪴शुभमस्तु !


09.01.2023◆5.45 आरोहणम् मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...