16/2023
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✍️ शब्दकार ©
🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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प्राची का अरुणिम सु - भाल है।
हटा तमस का इंद्रजाल है।।
संग उषा के दिनकर आया,
मंद - मंद चलता मराल है।
आँखें खोल शयन को त्यागें,
नाच उठी तरु डाल- डाल है।
कलियाँ मुस्काईं बेलों पर,
सूरज का मुख लाल - लाल है।
सरक रहीं सुइयाँ घड़ियों की,
कहते सब रुकता न काल है।
चलते रहें यही है जीवन,
सबकी अपनी अलग चाल है।
'शुभम्' प्रगति की किरण हजारों,
रंग दमकता ज्यों प्रवाल है।
🪴शुभमस्तु !
09.01.2023◆5.45 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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