35/2023
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✍️ शब्दकार ©
🖊️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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विद्या - माता भारती, देतीं निज उपहार।
हाथ गहातीं लेखनी ,बनता रचनाकार।।
चलती है जब लेखनी,लिखती साँचे बोल।
भाव शब्द संयोग से, देता है कवि घोल।।
ऐ मेरी प्रिय लेखनी,मत लिख ऐसे बोल।
चाटुकारिता हो भरी,कहे शब्द हर तोल।।
वाणी माँ देतीं नहीं, सबको शुभ उपहार।
साध न पाए लेखनी,झूठा नर बटमार।।
मान लेखनी का रखे,पावन कवि-कर्तव्य।
निज भावी उज्ज्वल करे,जीवन हो तव भव्य
नेता -वंदन में नहीं, लिखें न कविता लेख।
शब्दकार उत्तम वही, सफल लेखनी देख।।
सबल लेखनी शस्त्र से,करती है नित न्याय।
जज अधिवक्ता देश के,करते सत्य उपाय।।
मिले लेखनी -शक्ति जो, करना जन-उपचार।
जज वकील कवि वैद्य को,मिला ईश उपहार
धन्य -धन्य गुरु जनक माँ, हमें गहाई हाथ।
वाणी माँ की लेखनी,सदा 'शुभम्' के साथ।।
आओ पूजें लेखनी, श्रद्धा सह सम्मान।
ऊपर स्थित कर दिया,करती ऊँची शान।।
अहित नहीं करना कभी,सदा लेखनी मीत।
सदा सत्य आधार हो,जीवन में दे जीत।।
🪴शुभमस्तु!
18.01.2023◆9.30 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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