17/2023
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✍️ शब्दकार ©
🌈 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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रंग - रँगीली दुनिया सारी।
तरह - तरह की खिलती क्यारी।।
वेला खिलें महकती जूही।
कहीं धतूरा उगता यूँ ही।।
सुख - दुख सबके अपने - अपने।
देख रही दुनिया बहु सपने।।
अलग सभी की अपनी राहें।
स्वार्थ - पूर्ति अपनी सब चाहें।।
संत सु - धर्मी पर उपकारी।
होते सबके पीड़ाहारी।।
दानव दया न ममता जानें।
परपीड़ा में ही सुख मानें।।
नहीं कुसंगति कोई पाए।
आजीवन नर क्यों पछताए।।
सदा सुसंगति हम सब पावें।
कर्ता की नित महिमा गावें।।
दुनिया की बातों में आता।
जीवन भर वह नर पछताता।।
अपनी राहें आप बनाएँ।
श्रम का स्वेद सदा महकाएँ।।
दुनिया की हर चाल निराली।
गिरता देख बजाए ताली।।
कौन हितैषी जान न पाएँ।
आस्तीन के साँप न लाएँ।।
'शुभम्' आँख दो अपनी खोलें।
तब ही वचन किसी से बोलें।।
दुनिया जान न कोई पाया।
सीमा त्याग इतर जो धाया।।
🪴शुभमस्तु !
09.01.2023◆7.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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