सोमवार, 30 जनवरी 2023

स्वदेश के लिए जिया ⛳ [मनहरण घनाक्षरी ]

 51/2023

 

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✍️ शब्दकार ©

⛳ डॉ .भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

स्वदेश के लिए जिया,वही जिया वही जिया,

सनेह  देश  से  किया, भ्रांति ये  न  मानिए।

परोपकार व्यक्ति  का, सदुपयोग शक्ति  का,

दुरंत दैन्य  मुक्ति का, ज्ञान- क्रांति   ठानिए।।

स्वतंत्र ही विचार हो,न दासता का भार  हो,

सकार  ही  सकार हो,आदमी को   छानिए।

बनें न आस्तीन साँप, शत्रु रहे भीत   काँप,

पाप  कर्म  को  न   ढाँप, मीत पहचानिए।।


                         -2-

मिटे न कर्म आपका,तजे न दोष पाप का,

सुपुण्य ईश - जाप   का,भारती  पुकारती।

बने न श्वान  ढोर-सा,रहे सुकान्त  भोर-सा,

सु नेह  मेघ  मोर -सा, करें मातृ  - आरती।।

स्वदेश  आप  मानिए, भ्रांति वृथा न पालिए,

प्रवीर   क्रांति   ठानिए,   मातृ भू   उबारती।

अनेकता  में  एकता,  है देशभक्त   देखता,

रहे  न   बुद्धि - मेषता,  धर्म मर्म  ज्यारती।।


🪴शुभमस्तु !


28.01.2023◆3.00

पतनम मार्तण्डस्य।

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