51/2023
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✍️ शब्दकार ©
⛳ डॉ .भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
स्वदेश के लिए जिया,वही जिया वही जिया,
सनेह देश से किया, भ्रांति ये न मानिए।
परोपकार व्यक्ति का, सदुपयोग शक्ति का,
दुरंत दैन्य मुक्ति का, ज्ञान- क्रांति ठानिए।।
स्वतंत्र ही विचार हो,न दासता का भार हो,
सकार ही सकार हो,आदमी को छानिए।
बनें न आस्तीन साँप, शत्रु रहे भीत काँप,
पाप कर्म को न ढाँप, मीत पहचानिए।।
-2-
मिटे न कर्म आपका,तजे न दोष पाप का,
सुपुण्य ईश - जाप का,भारती पुकारती।
बने न श्वान ढोर-सा,रहे सुकान्त भोर-सा,
सु नेह मेघ मोर -सा, करें मातृ - आरती।।
स्वदेश आप मानिए, भ्रांति वृथा न पालिए,
प्रवीर क्रांति ठानिए, मातृ भू उबारती।
अनेकता में एकता, है देशभक्त देखता,
रहे न बुद्धि - मेषता, धर्म मर्म ज्यारती।।
🪴शुभमस्तु !
28.01.2023◆3.00
पतनम मार्तण्डस्य।
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