53/2023
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✍️ शब्दकार ©
🪂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कर्म - पुंज पहचान बनाते।
पत्थर को भगवान बनाते।।
जाती रात अँधेरी काली,
दिनकर विमल विहान बनाते।
सुमधुर स्वर लय के प्रवाह में,
मन - अनुरंजक गान बनाते।
नेह एकता सर्जक घर के,
स्वेद - बिंदु नव छान बनाते।
भौतिकता में क्या सुख ढूँढ़े?
सद्गुण ही सम्मान बनाते।
समय चढ़ाता मंजिल ऊँची,
नर - पुंगव सोपान बनाते।
'शुभम्' न भूले मानव गुण को,
गुड़ - से गुण इंसान बनाते।
🪴 शुभमस्तु !
30.01.2023◆7.30 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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