18/2023
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✍️ शब्दकार ©
🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
पकड़े प्याला हाथ में, ओढ़े मोटी सौर।
अंग-अंग आवृत सभी,शीत लहर का दौर।।
शीत लहर का दौर,शिशिर में थर-थर काँपे।
दिखते हाथ न पैर, वसन में ऐसे ढाँपे।।
'शुभम्'माघ का मास,चाय को कर में जकड़े
झाँकें ऊपर केश, ठंड उनको क्यों पकड़े??
-2-
बचना सबको शीत से,करना कुछ उपचार।
मोटा-सा गद्दा बिछा,परिहृत शीत विकार।।
परिहृत शीत विकार, रजाई ओढ़े भारी।
लगे न थोड़ी ठंड,मिटे कँपकँपी तुम्हारी।।
'शुभम्'गर्म हो चाय,सुखद कर्ता की रचना।
प्याला थामें हाथ,ठंड से सबको बचना।।
-3-
ओढ़ी मोटी सौर जब,शीत हो गया दूर।
नीचे गद्दा भी बिछा, सुखद हुआ भरपूर।।
सुखद हुआ भरपूर,ढँके तन सारा अपना।
थामा प्याला हाथ,चाय का क्या फिर तपना!
'शुभम्'माघ का शीत, निकट है उत्सव लोढ़ी।
सबल शीत उपचार, रजाई मोटी ओढ़ी।।
-4-
आई उत्तर से हवा, संग तुषारापात।
थर-थर नारी-नर कंपे,शीतल होते गात।।
शीतल होते गात, ओढ़ लें गरम रजाई।
बूढ़े बालक वृंद, युवा सब लोग- लुगाई।।
'शुभम्' चाय ले हाथ,बैठ कर कवि कविताई।
आवृत करले देह,तुहिन क्यों अंदर आई!!
-5-
धरती जल आकाश में बढ़ी शिशिर की शीत
ओस लदी तरु शाख पर,पल्लव होते पीत।।
पल्लव होते पीत, काँपते हैं नर - नारी।
ओढ़े मोटी सौर, सताती सर्दी भारी।।
'शुभं' चाय कप हाथ,थाम नीहारें झरती।
मछली से ले सीख,नदी में निज पर धरती।।
🪴शुभमस्तु !
10.01.2023◆7.30 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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