42/2023
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✍️ शब्दकार ©
🫧 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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🦢 पंच प्राण 🦢
पंच प्राण नर देह में,'प्राण' 'अपान' 'समान'।
संज्ञा चौथे पाँचवें, हैं 'उदान' सह 'व्यान'।।
प्रथम 'प्राण' को जानिए, खींचे श्वासाहार।
हर मानव की देह में,करता बल - संचार।।
वास 'प्राण' का वक्ष में,रंग ध्यान में पीत।
चक्र अनाहत को करे,श्वास- शक्ति संगीत।।
गुदा मूल में वास है, दूजा प्राण 'अपान'।
उत्सर्जन मल का करे, ऐसा सृजन-विधान।।
ध्यान लीन साधक कभी,रँग नारंगी दृश्य।
करे प्रभावित मूल को,प्राण 'अपान'अवश्य।।
रस-संचालन को करे,वितरित प्राण 'समान'
कर ज्वलंत ऊर्जा सभी,सक्रिय नाभि स्थान।
हरा रंग इस प्राण का,कहते जिसे 'समान'।
साधक हो जब ध्यान में,मणिपूरक पर जान।
चौथा प्राण 'उदान' है,ध्यान बैंगनी रंग।
कड़क बनाए देह को,क्रिया ऊर्ध्व ग्रीवांग।।
कंठ पश्च संभाग में, चक्र विशुद्ध निवास।
श्वासअन्न जल ग्रहण कर,भरे 'उदान' उजास
ग्रहण करे शिक्षा सभी,अपना प्राण 'उदान'।
नींद मरण में भी यही,दे विश्रांति का दान।।
पूरी मानव देह में, है संव्याप्त 'व्यान'।
स्वेद,रक्त,रस-संचरण,का रखता है ध्यान।।
चलना,उठना, बैठना, अंतर्मन के काज।
'व्यान'प्राण करता सदा,कल परसों या आज
'व्यान'खोलता चक्षु को,करता भी वह बंद।
वर्ण गुलाबी ध्यान में, चला श्वास स्वछंद।।
सहस बहत्तर नाड़ियाँ,'व्यान' प्राण की राह।
त्वचा,इन्द्रियाँ,पेशियाँ,तत्त्व नीर अवगाह।।
बाहर जो चलती हवा,कहलाती वह 'व्यान'।
करे समन्वय संतुलन,चक्कर स्वाधिष्ठान।।
🦢 पंच उप-प्राण 🦢
पंच प्राण के पाँच ही, होते हैं उप - प्राण।
'कूर्म','कृकल',सँग'नाग' के, 'देवदत्त'से त्राण।।
पंचम शुभ उप प्राण है,नाम 'धनंजय'जान।
करें क्रियाएँ देह की, बँटे विभाग समान।।
'नाग' एक उपप्राण है,प्रथम 'प्राण'का मान।
हिचकी वायु अपान भी,क्रोध, वायु संधान।।
क्रोधजात विष को करे,'नाग'सदा उत्पन्न।
भस्म करे तन की सुधा, करे उदर को धन्न।
उदर वात को रोकना, एक 'नाग' का काम।
रोके मितली आगमन,हृदय- तंत्र विश्राम।।
'कूर्म' प्राण 'अपान'से,है सम्बद्ध विभाग।
मृत्यु क्षणों में प्रथम ये,छोड़े अपना राग।।
नेत्र खोलना मूँदना, गुरुत्वाकर्षण - काज।
करे 'कूर्म' उपप्राण ही, एकाग्रता सुसाज।।
'कृकल' एक उपप्राण है,उसका प्राण'समान'
ऊर्जा रस विटमिन्स की,करता पूर्ति प्रतान।।
सफल साधना के लिए,करें 'कृकल'दृढ़ मीत।
भूख,प्यास,छींकें सभी,वश में कर के जीत।।
चौथे प्राण 'उदान' का, 'देवदत्त' उपप्राण।
लोकोत्तर से जोड़ता, करे ज्ञान का त्राण।।
अष्ट सिद्धि नव निद्धियाँ,'देवदत्त' आरूढ़।
शाप और वरदान भी,दर्श श्रवण अति गूढ़।।
जमहाई अँगड़ाइयाँ, 'देवदत्त' संबद्ध।
नासा से नर कंठ तक, निद्रालस में नद्ध।।
उदर-क्रियाओं से जुड़ा,'व्यान' प्राण उपप्राण
नाम 'धनंजय' जानिए,स्वस्थ करे तन त्राण।
रहना है नीरोग जो, सुदृढ़ रखें उपप्राण।
करें 'धनंजय' प्रबलतम,भाव न भर म्रियमाण
मृत्यु बाद भी देह में,रहे 'धनंजय' शेष।
बढ़ते नख या केश भी,बदले तन का वेष।।
पंच प्राण उपप्राण का,सकल सूक्ष्म विस्तार।
मानव का जीवन चले, करे 'शुभम्' सुविचार।
मनुज - देह साधन सदा, प्राणों का आधार।
बिना प्राण है मृत्तिका, क्षण भर में निस्सार।।
🪴शुभमस्तु !
22.01.2023◆9.00
पतनम मार्तण्डस्य।
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