सोमवार, 30 जनवरी 2023

अलसी सरसों झूमती 🌾 [ दोहा ]

 46/2023

  

[अलसी,सरसों, खेत,खलिहान,फागुन]

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✍️ शब्दकार ©

🌾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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      🌻 सब में एक 🌻

अलसी कलसी शीश रख,नाच रही है खेत।

नीली  साड़ी  सोहती, गाती- सी    समवेत।।

भोजन के सँग लीजिए,जी अलसी के बीज

कब्ज अपच हरती सदा,ये औषधि की चीज


पीली  चादर  ओढ़कर,उतरा नव  मधुमास।

सरसों फूली  नाचती,भीनी भरी   सुवास।।

धरती का शृंगार कर,सरसों प्रमुदित आज।

पीत सुमन महमह करें,बँधा शीश पर ताज।।


सरसों अलसी खेत में,करतीं जीभर नृत्य।

मौन गीत वे गा रहीं,कवि कहता है सत्य।।

खड़े खेत  गोधूम  के,झूमे हरित     बहार।

भरी  बालियाँ  नाचतीं, पा झोंकों का प्यार।।


धान पका खलिहान से,लाया उठा किसान

प्रमुदित है सहधर्मिणी,अवसर कर लें दान।।

पछताया कागा पड़ा,बहा  अन्न खलिहान।

रही गिलहरी हर्षिता,श्रम का अपना  मान।।


इधर  माघ होता विदा, फागुन आया  झूम।

भौंरे  झूमे  फूल  पर,  रहे कली  को  चूम।।

फागुन है   तो  रंग  है, रंग-संग   मधुमास।

बौराए  हैं  आम  ये, उठती मधुर   सुवास।।


     🌻   एक में सब  🌻

सरसों  अलसी   खेत में,

                            नाच रहीं नित    झूम।

अन्न    भरे   खलिहान  में,

                           फागुन लेता      चूम।।


🪴 शुभमस्तु !


24.01.2023◆10.30

पतनम मार्तण्डस्य।

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