सोमवार, 30 जनवरी 2023

रचना कर परहित में🇮🇳 [गीतिका ]

44/2023


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बिना    कर्म   मिलता    न  तुझे     कण।

करता    है     क्यों    वृथा    मनुज  रण??


समय     नष्ट     करता     है    यों       ही, 

क्यों       न     बनाता   उपयोगी     क्षण?


आस्तीन           का     साँप    बना    नर,

फैलाता        अपना       चौड़ा       फण।


देशप्रेम         धर     जनहित   कर     ले,

कर         अमृत - वाणी     का   प्रसवण।


अपना          पेट        श्वान  भी      भरते,

पर   -    उपकारी      बन    कर    अर्पण।


रचना        कर      परहित    में   कृतियाँ,

वृथा     नहीं     धरती     पर लघु     तृण।


चुम्बक     'शुभम्'     बने यदि      मानव,

सदा         मिले           पावन आकर्षण।


🪴शुभमस्तु !


23.01.2023◆6.30आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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