20/2023
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✍️ शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
अपनी -अपनी अनमोल लगे,
शुभ भाषित भाव भरी बगिया।
बगिया महके बहु शब्दमयी,
रचि भाल सजाइ रही बिंदिया।।
बिंदिया सत रूप उदोत लिए,
निज ओप लुभाइ करे सुखिया।
सुखिया वह नेह स्वदेश करे,
बनता नर अन्य महा दुखिया।।
-2-
जननी शुभ बोल सिखाय दिए,
जननी-उपकार नहीं बिसरा।
बिसरा जन मूढ़ कृतघ्न महा,
उर नेक नहीं निखरा सुथरा।।
सुथरा घर मंदिर पूज्य लगे,
जँह देव बसें फिरते चँवरा।
चँवरा गह हाथ सुसेव करें,
प्रति फूल फिरें उड़ते भँवरा।।
-3-
यह भारत देश महान सदा,
अभिनंदन वंदन ही करिए।
करिए सब काम सही अपने,
बद काम सभी करते डरिए।।
डरिए नहिं बोल कहें बिगड़े,
घट पुण्य सु काज सदा भरिए।
भरिए कवि काव्य सुभाष सदा,
कर भक्ति स्वदेश नदी तरिए।।
-4-
जननी मम तात धरा जनमे,
यह देह नई बनती उनसे।
उनसे सत काज हुए भव में,
अणु रक्त बने उनके कन से।।
कन से यह सृष्टि स्वरूप सजा,
कविता करते कवि जी मन से।
मन से गतिशील नहीं जग में,
ममता न नसे मानव तन से।।
-5-
शुभ की शुभता दुर की दुरता,
मिटती न कभी कवि की कविता।
कविता भर भाव बहे उर से,
पहुँचे उस ठौर जहाँ सविता।।
सविता-कर ज्योति करें जग में,
कवि नम्र सदा सत से झुकता।
झुकता कब काठ नहीं नम जो,
वह टूट रहा जब भी तनता।।
🪴शुभमस्तु !
10.01.2023◆4.30 पतनम मार्तण्डस्य।
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